बंसुरी बजा के चले टेढ़ी मेढ़ी चाल है।
ऐसा ही रंगीला छैला , नन्दजी का लाल है।
मीठी मीठी तान तीनो लोकों में छा गयी
देव नर नारी सब ऋषि मन भा गयी
जमुना का जल रुका, चाँद भुला चाल है।
ध्यान चुका ब्रम्हा का, समाधि शम्भू टूट गयी।
लीला यह देखकर , पार्वती रूठ गयी।
भूत गण नाचे गावे, शिव चन्द्र भाल है।
कुंजन में खड़े हो चलावे नयन बाण है।
तिरछी नजरियां, मंद मुश्कान है।
हंस हंस छवि को, बिछावें प्रेम जाळ है।
मोर मुकुट सोहे हाथोँ में लकुटी
चटक मटक कर बांकी सी भृकुटि
दास नाच नाच के रिझावै ब्रजपाल है।
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